सिस्टम की अनदेखी से आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव में स्कूल नही,सिस्टम की आंख खोलती खबर,जानिए विकास से कोसो दूर गांव की पूरी कहानी…
जिला एमसीबी(छत्तीसगढ़)
ग्राम पंचायत कुदरा पा में आजादी के 75वें साल भी स्कूल नही बुजुर्गों की बूढ़ी आंखे शाला प्रवेश उत्सव देखने के लिए तरस रही है। अब गांव के लोगो को किसी तमत्कार के इंतजार में दिन गिन रहे है। गांव के बुजुर्गों ने कभी स्कूल नही देखा पर अपने पीढ़ी के लिए गांव में स्कूल शिक्षा व्यवस्था का सपना जरूर देखा था सरकार आती जाती रही विकास के दावों का ढिंढोरा पीटटी रही पर इस गांव की जमीनी हकीकत तो यही बया कर रही न शिक्षा न स्वास्थ्य न गांव को जोड़ने वाली पक्की सड़क विकास के नाम पर बड़ा धोखा
हम बात कर रहे है एमसीबी जिला के भरतपुर विकासखंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत कुदरा पा की जो स्कूल विहीन है। गांव में लगभग डेढ़ सौ परिवार निवास रत है गांव की जनसंख्या दो सौ के पार है। शिक्षा ग्रहण करने के लिए 75 बच्चे तैयार है। गांव में निवासरत ग्रामीणों की आर्थिक स्थति दयनीय है। जिसके वजह से शहर में रख कर बच्चों को शिक्षित नही बना सकते ऐसे में हर पंचवर्षीय इस आस से ही मतदान करते है कि कोई ऐसा नेता क्षेत्र में नेतृत्व करें जो हमारे गांव का विकास करें अत्यधिक मूलभूत सुविधा गांव में उपलब्ध कराए लेकिन आजादी के 75 साल पूरे होने जा रहे आज तक ऐसा कोई नेता क्षेत्र से ऊंचे औधे के लिए पैदा नही हुआ जो गांव की समस्या को सुन कर समस्याओं पर विराम लगा सके ।
जान जोखिम में डाल खबर कवरेज
जब हमारे सांथी पत्रकार कवरेज के लिए निकले औऱ जैसे ही वे राष्ट्रीय गुरु घासी दास नेशन पार्क एरिया में प्रवेश किये तो उनके बाइक के सामने गौर का झुंड आ गया दो तीन गौर ने तो अटेक की मनसा से पत्रकार सांथियो को दूर तक दौड़ाया भी लेकिन पत्रकार सांथियो ने हौशला बुलंद करते हुए हिम्मत नही हारी वे अपने कवरेज स्थान तक पहुचे और खबर लेकर आए भी क्योंकि जरूरी थी उस गांव के नन्हे भविष्य के लिए सरकार तक गांव के बुजुर्गों कि बात पहुचानी थी। बुजुर्गों की बूढ़ी आंखों के सपनो को संजोना है इस लिए जान जोखिम में डाल हमारे जांबाज सांथी पत्रकार जान की परवाह किये बिना ही आखिर कार ग्राम पंचायत कुंदरा पा पहुँचे।
आर्थिक स्थिति मजबूत नही पर इरादे मजबूत
गांव के बुजुर्गों ने तो कभी स्कूल नही देखा पर उनकी आगे की पीढ़ी शिक्षित हो इसके लिए मजबूत इरादों के साँथ गांव के अधिकतर बच्चे अपने नाथ रिश्तेदारो के यहाँ रहकर पढ़ाई शुरू की और शिक्षा ग्रहण कर रहे है। ये सिस्टम के मुह में जोरदार तमाचा है। पर गांव में ऐसी भी बेवसी है की जिनके नाथ रिश्तेदार गांव से बाहर नही है रहते वो कैसे जाए शिक्षा ग्रहण करने महंगाई के दौर में परिजन मजबूर है। शिक्षा को लेकर शासन की बनाई गई योजनाओं का इस गांव में प्रभाव नजर नही आता औऱ कह सकते है योजना पूरी तरह फेल है।
पूर्व की खबर में हुआ था खाना पूर्ति
पूर्व में स्कूल नहीं होने की खबर दिखाया गया था, जिसके बाद जिला शिक्षा अधिकारी के द्वारा पहल कर वैकल्पिक व्यवस्था की गई थी और मोहल्ला क्लास की शुरुआत हुई थी, लेकिन कुछ दिनों के बाद वह फिर से दम तोड़ता नजर आया। यहां जिस शिक्षक को पढ़ाने के लिए ड्यूटी लगाई गई थी, वो कभी कभार फार्मेल्टी पूरा करने आ जाया करते थे, बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी गांव के कुछ पढ़ें लिखे युवकों पर ही निर्भर है, लेकिन वे इतने निपुण नहीं है कि अभी बच्चों को पढ़ा सके।इस वजह से छात्रों को पूरा शिक्षा नहीं मिल पाया । ग्रामीणों द्वारा बताया जा रहा है की यहां जो शिक्षक पदस्थ है ओ महीना में या फिर 15 दिन में 1 या 2 दिन ही स्कूल आते हैं जबकि ग्राम पंचायत कुदरा पा में कक्षा पहली से लेकर सातवीं तक के बच्चे मौजूद है पढ़ाई के लिए इसके पहले अपने गांव से 15-20 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत चूल मैं जाना पड़ता था या फिर वहीं अपने रिश्तेदार के घर में रहकर पढ़ाई करते थे लेकिन आज ग्राम पंचायत कुदरा पा में स्कूल शिक्षा होने के मौजूद भी बच्चों कि भविष्य अंधकार में डूबते नजर आ रही है।
शासन प्रशासन को आईना दिखाने जब पत्रकारों ने कुदरा पा का गांव का दौरा किया और वहां की वास्तविक स्थिति का जायजा लेकर लौटे इसके बाद प्रशासनिक अधिकारियों की जानकारी ली तो खलबली मच गई और दौड़े दौड़े अधिकारी ग्राम पंचायत कुदरा पा पहुंचे और तत्कालीन व्यवस्था कर बच्चों को शिक्षा की व्यवस्था की..