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पहले लाखों- करोड़ों फूंक पंचायतों में बनवाया सामुदायिक शौचालय अब ताला लगा बना रहे खंडहर

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कोरबा:- जिस तरह से ओपीडी हो चुके ग्राम पंचायतों में लाखों रुपए खर्च कर सार्वजनिक शौचालय बनवाने के बाद उसे ताला लगा खंडहर होने के लिए जिम्मेदारों ने छोड़ दिया है, इससे यह केवल सरकार के पैसों को फूंकने जैसा ही नजर आ रहा है। नतीजा उपयोग के अभाव में ये शोपीस बन पड़े- पड़े खंडहर में तब्दील होने शुरू हो चुके हैं।जिनके भरोसे जिला प्रशासन के द्वारा ग्राम पंचायतों में स्वच्छता लाने का ढिंढोरा पीटा गया था उन्हें ही जिम्मेदारों ने शोपीस बनाकर रख दिया है। गौरतलब है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत ओडीएफ हो चुके गांवों में सार्वजनिक स्थानों पर लोगों को प्रसाधन की व्यवस्था सुलभ रुप से उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सामुदायिक शौचालयों का निर्माण कराना गया है। योजना के तहत कोरबा जिले के कोरबा, करतला, कटघोरा, पोड़ी उपरोड़ा व पाली ब्लाक के लगभग सभी पंचायतों में सामुदायिक स्वास्थ्य शौचालय बनवाया गया है जहां अधिकतर जगहों पर ताला ही लटक रहा है।

एक शौचालय बनाने में एक से साढ़े तीन लाख तक खर्च
सामुदायिक शौचालय के लिए राशि निर्माण पंचायत की आबादी के अनुसार जारी की गई है। जिसमें एक लाख रुपए से लेकर साढ़े तीन लाख रुपए तक एक सामुदायिक शौचालय के लिए राशि दी गई थी। इसमें स्वच्छ भारत मिशन, मनरेगा और 15वें वित्त तीनों की राशि के अलावा जिला खनिज न्यास निधि मद की राशि भी शामिल है। अधिकांश जगहों पर पंचायत ही निर्माण एजेंसी है और निर्माण हो जाने के बाद सरपंच ही संचालन के लिए जवाबदार है। मगर विडंबना है कि जिन्होंने खुद बनवाया है उन्होंने ही मुंंह फेर लिया।न तो सरपंच- सचिवों को कोई मतलब है और न ही जनपद से लेकर जिला पंचायत और जिला प्रशासन में बैठे अफसरों को।

पंचायतों में सामुदायिक शौचालयों का हाल

जिले के पांचों जनपद अंतर्गत 70 प्रतिशत ग्राम पंचायतों में निर्मित सामुदायिक शौचालय में ताला लटका हुआ है, जो केवल शोपीस बना हुआ है। वहीं कई पंचायत में स्थल चयन में लापरवाही हुई है और गांव से आउटर में शौचालय बनवा दिया गया है। जिसका कोई उपयोग नहीं नजर आ रहा। इसी तरह अनेक ग्राम पंचायत में सामुदायिक शौचालय को अधूरा ही छोड़ दिया है, जो टूटते- फूटते पड़ा है। ऐसे में अगर आंकलन किया जाए तो जिले भर में महज 15 प्रतिशत सामुदायिक शौचालय का सही मायने में उपयोग हो रहा है बांकी के शौचालयों में कहीं ताला लटका तो कहीं आधा- अधूरा तो कहीं अनुपयोगी साबित हो रहे है।

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